अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद दार्शनिक मुद्दे
अनुभव समुच्चय :
ब्रह्मानुभूति में परमानन्द,
आत्मानुभूति में आनन्द,
बुद्घि की अनुभूति में संतोष,
चित्त की अनुभूति में शांति,
वृत्ति की अनुभूति में सुख
ब्रह्मानुभूति में परमानन्द,
आत्मानुभूति में आनन्द,
बुद्घि की अनुभूति में संतोष,
चित्त की अनुभूति में शांति,
वृत्ति की अनुभूति में सुख
चतुष्टय
अवस्था चतुष्टय : पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था, ज्ञानावस्था
आयाम चतुष्टय : उत्पादन, व्यवहार, विचार, अनुभव
भय चतुष्टय : प्राणभय, पद भय, धन भय, मान भय
विषय चतुष्टय : आहार, निद्रा, भय, मैथुन
चतुर्दिग उदय : संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था
जीवन लक्ष्य : सुख, शांति, संतोष, आनन्द
मानव लक्ष्य : समाधान, समृद्घि, अभय, सह-अस्तित्व
अवस्था चतुष्टय : पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था, ज्ञानावस्था
आयाम चतुष्टय : उत्पादन, व्यवहार, विचार, अनुभव
भय चतुष्टय : प्राणभय, पद भय, धन भय, मान भय
विषय चतुष्टय : आहार, निद्रा, भय, मैथुन
चतुर्दिग उदय : संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था
जीवन लक्ष्य : सुख, शांति, संतोष, आनन्द
मानव लक्ष्य : समाधान, समृद्घि, अभय, सह-अस्तित्व
त्रय
ऐषणा त्रय : पुत्रेषणा, वित्तेषणा, लोकेषणा
कार्यक्रम त्रय : आर्थिक कार्यक्रम, सुरक्षात्मक कार्यक्रम, सदुपयोगात्मक कार्यक्रम
क्रिया त्रय : भौतिक क्रिया, बौद्घिक क्रिया, रासायनिक क्रिया
चक्र त्रय : प्राण पद चक्र, भ्राँति पद चक्र, देव पद चक्र
तथ्य त्रय : परिणाम, निर्णय प्रक्रिया के कारण गुण, गणित ही आद्यान्त आधार है। यही
निर्णायक तथ्य त्रय है।
‘‘ता-त्रय” : मानवीयता, देव मानवीयता, दिव्य मानवीयता
नियम त्रय : सामाजिक नियम, प्राकृतिक नियम, बौद्घिक नियम
नीति त्रय : धर्म नीति, अर्थ नीति, राज्य नीति
प्रतिष्ठा त्रय : अनुभव में परमानन्द प्रतिष्ठा,
विचार में समाधान प्रतिष्ठा,
व्यवहार में प्रेम प्रतिष्ठा
प्रमाण त्रय : व्यवहार, प्रयोग, अनुभूति
पूर्णता त्रय : गठन पूर्णता, क्रिया पूर्णता, आचरण पूर्णता
मूल्य त्रय : स्थापित मूल्य, मानव मूल्य, जीवन मूल्य
व्यवहार त्रय : कायिक, वाचिक, मानसिक
‘‘वाद’’ त्रय : समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद, अनुभवात्मक अध्यात्मवाद
शक्ति त्रय जागरण : इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, ज्ञान शक्ति का जागरण
ऐषणा त्रय : पुत्रेषणा, वित्तेषणा, लोकेषणा
कार्यक्रम त्रय : आर्थिक कार्यक्रम, सुरक्षात्मक कार्यक्रम, सदुपयोगात्मक कार्यक्रम
क्रिया त्रय : भौतिक क्रिया, बौद्घिक क्रिया, रासायनिक क्रिया
चक्र त्रय : प्राण पद चक्र, भ्राँति पद चक्र, देव पद चक्र
तथ्य त्रय : परिणाम, निर्णय प्रक्रिया के कारण गुण, गणित ही आद्यान्त आधार है। यही
निर्णायक तथ्य त्रय है।
‘‘ता-त्रय” : मानवीयता, देव मानवीयता, दिव्य मानवीयता
नियम त्रय : सामाजिक नियम, प्राकृतिक नियम, बौद्घिक नियम
नीति त्रय : धर्म नीति, अर्थ नीति, राज्य नीति
प्रतिष्ठा त्रय : अनुभव में परमानन्द प्रतिष्ठा,
विचार में समाधान प्रतिष्ठा,
व्यवहार में प्रेम प्रतिष्ठा
प्रमाण त्रय : व्यवहार, प्रयोग, अनुभूति
पूर्णता त्रय : गठन पूर्णता, क्रिया पूर्णता, आचरण पूर्णता
मूल्य त्रय : स्थापित मूल्य, मानव मूल्य, जीवन मूल्य
व्यवहार त्रय : कायिक, वाचिक, मानसिक
‘‘वाद’’ त्रय : समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद, अनुभवात्मक अध्यात्मवाद
शक्ति त्रय जागरण : इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, ज्ञान शक्ति का जागरण
पंच कोटि मानव : पशु मानव, राक्षस मानव, मानव, देव मानव, दिव्य मानव
पाँच स्थितियाँ : व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, अंतर्राष्ट्र
विकार
षड् विकार (भ्रम की स्थिति में) :
1. काम - सम्मोहन पूर्वक
2. क्रोध - विरोधवश
3. लोभ - संग्रहवश
4. मोह - रहस्यतावश
5. मद – अभिमानवश
6. मात्सर्य - असह-अस्तित्ववश व शोधवश
षड् विकार (भ्रम की स्थिति में) :
1. काम - सम्मोहन पूर्वक
2. क्रोध - विरोधवश
3. लोभ - संग्रहवश
4. मोह - रहस्यतावश
5. मद – अभिमानवश
6. मात्सर्य - असह-अस्तित्ववश व शोधवश
षड् विकार का गुणात्मक परिवर्तन (मानवीयता की स्थिति में) :
1. काम - शिष्टतापूर्ण लज्जा में
2. क्रोध - धैर्य साहस में
3. लोभ - उदारतापूर्वक दया में
4. मोह - अर्हतापूर्वक अपेक्षा में
5. मद - सम्मानाभिव्यक्ति सहित कृतज्ञता में
6. मात्सर्य - सह-अस्तित्वपूर्ण अभयता में
1. काम - शिष्टतापूर्ण लज्जा में
2. क्रोध - धैर्य साहस में
3. लोभ - उदारतापूर्वक दया में
4. मोह - अर्हतापूर्वक अपेक्षा में
5. मद - सम्मानाभिव्यक्ति सहित कृतज्ञता में
6. मात्सर्य - सह-अस्तित्वपूर्ण अभयता में
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