*सत्ता में संपृक्त प्रकृति*
शून्य में डूबी,
शून्य में भींगी,
शून्य में घिरी,
प्रकृति अनंत ।1।
शून्य में भींगी,
शून्य में घिरी,
प्रकृति अनंत ।1।
शून्य ही सत्ता,
शून्य ही पूर्ण,
शून्य अखंड में,
क्रिया निरंतर ।2।
शून्य ही ब्रह्म,
शून्य ही परम,
शून्य ही ईश्वर,
प्रकृति ऐश्वर्य ।3।
शून्य ही साम्य,
सबमें समान,
शून्य ही ऊर्जा,
प्रकृति उर्जित ।4।
ग्रह-गोल-नक्षत्र,
अनंत सब शून्य में,
होना-रहना इसी शून्य में,
शून्य ही सबकी सत्ता ।5।
सत्ता में अनंत प्रकृति,
संपृक्त है जिसका रूप,
अस्तित्व ही सहअस्तित्व,
यह जड़-चेतन स्वरूप।6।
शून्य ही व्यापक,
क्रिया अनंत,
शून्य असीम,
क्रिया ससीम ।7।
शून्य ही स्थिर,
क्रिया निरंतर,
शून्य क्रिया में,
स्थिर लक्षण ।8।
यही नियंत्रण,
यही संतुलन,
सहअस्तित्व में,
इसका अध्ययन ।9।
सहअस्तित्व अनुभव में,
होता इसका ज्ञान,
यही ज्ञान आचरण में,
विवेक-विज्ञान पहचान ।10।
ब्रह्म शून्य में होता,
स्थिरता का ज्ञान,
निश्चित आचरण ही,
संस्कृति सभ्यता पहचान ।11।
विचार स्थिरता,
समाधान पहचान,
संबंधों की स्थिरता,
न्याय निरंतर पहचान ।12।
*सुरेन्द्र पाठक*
अगस्त 14, 2020
अगस्त 14, 2020
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