विराटता का दर्शन
विराट में है ब्रह्म की पहचान,
ब्रह्म में ही विराट का होता ज्ञान।1।
सत्ता में संपृक्त है चैतन्य प्रकृति,
जिसमें स्पष्ट है सभ्यता और संस्कृति ।2।
सत्ता अविभाज्यता में स्वयं को तू विराट जान,
अखंड समाज में मानव की विराट पहचान ।3।
व्यक्ति, समुदायवाद नहीं विराट की पहचान,
अखंड समाज मानवीयता ही विराट पहचान।4।
निजता, संकीर्णता, व्यक्तिवाद नहीं मानव पहचान,
अखंड समाज, सामाजिकता ही मानव की पहचान।5।
अहंकार में क्यों करते स्वयं को संकुचित,
व्यापकता में सहजता से जीना ही उचित।6।
सहअस्तित्व में मानव की विराटता का ज्ञान,
सहअस्तित्व में जीना ही ज्ञान, विवेक, विज्ञान ।7।
जीव चेतना पर क्यों करता मानव तू गुमान,
मानव चेतना में है विराट स्वाभिमान ज्ञान।8।
रूप, पद, बल,धन नहीं है स्वत्व की पहचान,
मूल्य, चरित्र, नैतिकता में स्वत्व हो तू जान।9।
संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था मानव की पहचान अखंडता, सार्वभौमता, समरसता में होता यह ज्ञान।10।
ब्रह्म में विराट के सहअस्तित्व को पहचानिए,
सहअस्तित्व में जीकर विराट पहचान पाइए।11।
सुख, शांति, संतोष, आनन्द के लिए यही,
समझिये, समझाइये, सीखिए और सिखाइये।12।
*सुरेंद्र पाठक*
1 अगस्त 2020
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