Monday, August 17, 2020

जड़-चैतन्य का विराट दृश्य


जड़-चैतन्य का विराट दृश्य


तुम धरा में खोजते, 
हीरे, मोती, सोना, चांदी,
मैं तुममें ही खोजता, 
दिव्य अलौकिक हीरे-मोती ।1।

तुम धरा में खोजते, 
रूप, रंग औ रस, गंध,
मैं तुम में ही खोजता, 
रूप, रंग और दिव्य रस ।2।

तुम धरा में खोजते, 
उसके उद्गम और विस्तार को,
मैं तुम में ही खोजता, 
तेरे उद्गम और सार को ।3।

जड़ की विस्तार खोज में, 
तुम अनंत में खो गए,
जीवन का विस्तार देखकर, 
मैं अनंत में खो गया ।4।

उद्गम-अंत एक रहस्य सा, 
लगता तुझको मुझको है, 
जड़-चैतन्य का विराट दृश्य, 
दिखता तुमको मुझको है ।5। 

कितनी सुंदर रचना होगी, 
जड़-चेतन के संगम से, 
एक रचेगा बाहर दुनिया,
एक रचेगा अंदर से ।6।
                                    
डा. सुरेन्द्र पाठक
(यह रचना 1985 M.Tech. (Applied Geology) कोर्स पूरा होने के बाद हुए फेयरवेल के समय लिखी थी और वहां प्रस्तुत की थी)

गुरू की महिमा

 गुरू की महिमा
(परम पूज्य नागराज जी को समर्पित)

काव्य में शब्द संयोजन, 
सहअस्तित्व ज्ञान संबोधन,
मानवीय भाव नित्य प्रबोधन,
सब गुरु की महिमा जान ।1।

कृतज्ञता करें हम अर्पण, 
श्रद्धा सहित पूर्ण समर्पण, 
प्रेम-अनन्यता स्वयं में जान, 
गुरु की महिमा पहचान ।2।

धीर-वीर-गंभीर सदा रह, 
न्याय, विवेक ज्ञान प्रदान,
उदारता, दया, कृपापूर्वक 
दिया परमसत्य का ज्ञान ।3।

ऐषणा मुक्त दिव्यता युक्त,
स्वभाव है जिनका करुणा,
व्यक्त हुई जिनसे मानव की,
महिमा, गरिमा और पहचान ।4।

मन उत्साहित, वृत्ति उल्लासित,
चित्त अल्हादित, बुद्धि अप्लावित,
सहअस्तित्व में आत्म का दर्शन,
अनुभव परम आनंद प्रमाण ।5।

ऐसे गुरु का सानिध्य निरंतर,
सुख-शांति का स्रोत चिरंतर,
अखंडता, सार्वभौम प्रकाशन,
 स्वत्व, स्वतंत्रता की पहचान ।6।

सहअस्तित्व में प्रकृति दर्शन,
अखंड समाज मानव का दर्शन,
नियम, न्याय, धर्म, सत्य पूर्वक
सर्वतोमुखी समाधान पहचान ।7।

सार्वभौम व्यवस्था नित्य प्रमाण
गुरु की महिमा को जान......

सुरेन्द्र पाठक
(मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद के अध्येता)
17 अगस्त, 2020

सहअस्तित्व में होना-रहना

 सहअस्तित्व में होना-रहना

शब्द, परिभाषाएं
    से अर्थ होता स्पष्ट,
सहअस्तित्व में,
    वस्तु सदा प्रकट ।1।
स्थिति-गति का
    सह-अस्तित्व,
होना-रहना,
    नित्य है वर्तमान ।2।
क्रियाशून्यता-क्रिया 
    का सहअस्तित्व,
नित्य-निरंतर 
    शाश्वत जान ।3।
व्यापक वस्तु में,
    एक-एक वस्तु,
ब्रह्म वस्तु में,
    प्रकृति विराट ।4।
पारगामी-पारदर्शी
    है व्यापक वस्तु
समझना-समझना
    इसका प्रमाण ।5।
पारदर्शी संबंध में
    न्याय पारगामिता
सहअस्तित्व सहज
    समझ पहचान ।6।
ब्रह्म चेतना,
    प्रकृति दो रूप,
जड़-चैतन्य,
    सहअस्तित्व है रूप ।7।
जड़ में होती,
    ऊर्जा संपन्नता,
चैतन्य में होती,
    ज्ञान संपन्नता जान।8।
साम्य ऊर्जा,
    व्यापक है जान,
ज्ञान संपन्नता,
   चैतन्य की पहचान ।9।
मानव शरीर-जीवन
    का संयुक्त रूप,
सह-अस्तित्व का 
    यही है प्रतिरूप ।10।
सह-अस्तित्व में
    क्रिया का दर्शन,
ज्ञान संपन्नता
    जीवन में अनुभव ।11।
व्यापक शून्य में,
    जड़-चेतन की सत्ता,
सहअस्तित्व में
   सत्तामयता भाव ।12।
 सत्ता संपृक्तता 
    नियम है जान,
व्यवहार क्रिया में 
    न्याय पहचान ।13।
विचार क्रिया में 
    समाधान की सत्ता 
अनुभव क्रिया 
    सत्य पहचान ।14।
नियम, न्याय, धर्म, 
    सत्य की व्यापकता, 
जीवन में होती 
    ज्ञान पहचान ।15।
व्यवहार में विवेक,
    व्यवसाय में विज्ञान,
ज्ञान-विवेक-विज्ञान 
   आचरण पहचान ।16।
ब्रह्म वस्तु में 
    स्वयं का होना,
रहना नित्य-निरंतर
    सहअस्तित्व पहचान ।17।
विश्वास-प्रेममयता
    परिवार-समाज संबंध में, 
 मूल्य, मूल्यांकन, निर्वाह में
    उभय तृप्ति पहचान।18।

*सुरेन्द्र पाठक*
16 अगस्त, 2020

सत्ता में संपृक्त प्रकृति

 *सत्ता में संपृक्त प्रकृति*

शून्य में डूबी,
  शून्य में भींगी,
    शून्य में घिरी,
      प्रकृति अनंत ।1।

शून्य ही सत्ता,
  शून्य ही पूर्ण,
    शून्य अखंड में,
      क्रिया निरंतर ।2।

शून्य ही ब्रह्म,
  शून्य ही परम,
    शून्य ही ईश्वर, 
      प्रकृति ऐश्वर्य ।3।

शून्य ही साम्य,
  सबमें समान,
    शून्य ही ऊर्जा, 
       प्रकृति उर्जित ।4।

ग्रह-गोल-नक्षत्र,
  अनंत सब शून्य में,
    होना-रहना इसी शून्य में,
      शून्य ही सबकी सत्ता ।5।

सत्ता में अनंत प्रकृति,
  संपृक्त है जिसका रूप,
    अस्तित्व ही सहअस्तित्व,
        यह जड़-चेतन स्वरूप।6।

शून्य ही व्यापक,
  क्रिया अनंत,
    शून्य असीम,
       क्रिया ससीम ।7।

शून्य ही स्थिर,
  क्रिया निरंतर,
    शून्य क्रिया में,
       स्थिर लक्षण ।8।

यही नियंत्रण,
  यही संतुलन,
    सहअस्तित्व में,
       इसका अध्ययन ।9।

सहअस्तित्व अनुभव में,
  होता इसका ज्ञान,
    यही ज्ञान आचरण में,
       विवेक-विज्ञान पहचान ।10।

ब्रह्म शून्य में होता,
  स्थिरता का ज्ञान,
    निश्चित आचरण ही,
       संस्कृति सभ्यता पहचान ।11।

विचार स्थिरता, 
  समाधान पहचान,
    संबंधों की स्थिरता,
      न्याय निरंतर पहचान ।12।


*सुरेन्द्र पाठक*
अगस्त 14, 2020

समस्या-समाधान

समस्या-समाधान

समस्या
खुद घनचक्कर, 
जान रे मक्कर,
भ्रम का चक्कर,
ज्ञान से फक्कर,
काम का भुक्कर,
लोभ से चुगकर,
मद का चक्कर,
रूप में फंसकर,
लोभ में धंसकर, 
मोह में ठसकर
क्रोध में थककर,
मात्सर्य घनचक्कर,

न स्पर्धा न कोई दौड़,
भ्रम-अज्ञान-भय का दौर,
मानव की नहीं कोई ठौर।

समाधान
ज्ञान में पककर,
विवेक समझकर,
हाथ पकड़कर,
साथ में रहकर,
न्याय में जीकर,
सत्य को पीकर,
समाधान में रखकर,
धर्म में चलकर,
विश्वास में संभलकर,
प्रेम में डूबकर,
मानवीय होकर,
दिव्यता लक्ष्य कर,

करले मानव अध्ययन और,
चेतना संक्रमण का यह दौर,
समाधान-समृद्धि जान ये ठौर।

*सुरेन्द्र पाठक*
*6 अगस्त, 2020*

संबंध-मूल्य


संबंध-मूल्य


मां में ममता,

पिता में वात्सल्य,

प्रेममयी पहचान ।1।

भाई-बहन सब रहते 

स्नेह, प्रेम, सम्मान ।2।

पति-पत्नी में विश्वास,

सम्मान, प्रेम का प्रावधान ।3।

मित्रों में परस्पर विश्वास, 

स्नेह, प्रेम विधान ।4।

गुरु-शिष्य में होती श्रद्धा, 

गौरव, प्रेम, अनन्यता महान ।5।

साथी-सहयोगी में होता,

सहयोग, स्नेह, प्रेम प्रधान ।6। 

व्यवस्था संबंध ही होता,

प्रेममयता का प्रमाण ।7।

मूल्यमय जीना संबंधों में सुख, 

शांति, संतोष, आनंद प्रमाण ।8। 

मूल्यहीनता में रहना-जीना,

दुख, पीड़ा, अज्ञान, थकान ।9।

नियम-न्याय ही संबंधों में, 

नित्य समाधान प्रमाण ।10। 

सहअस्तित्व नित्य संबंध पहचान,

अखंड समाज ही इसका प्रमाण ।11।


*सुरेंद्र पाठक*

*3 अगस्त, 2020*

विराटता का दर्शन

 विराटता का दर्शन


विराट में है ब्रह्म की पहचान, 

ब्रह्म में ही विराट का होता ज्ञान।1। 

सत्ता में संपृक्त है चैतन्य प्रकृति, 

जिसमें स्पष्ट है सभ्यता और संस्कृति ।2।

सत्ता अविभाज्यता में स्वयं को तू विराट जान,

अखंड समाज में मानव की विराट पहचान ।3।

व्यक्ति, समुदायवाद नहीं विराट की पहचान,

अखंड समाज मानवीयता ही विराट पहचान।4।

निजता, संकीर्णता, व्यक्तिवाद नहीं मानव पहचान,

अखंड समाज, सामाजिकता ही मानव की पहचान।5।

अहंकार में क्यों करते स्वयं को संकुचित,

व्यापकता में सहजता से जीना ही उचित।6।

सहअस्तित्व में मानव की विराटता का ज्ञान, 

सहअस्तित्व में जीना ही ज्ञान, विवेक, विज्ञान ।7।

जीव चेतना पर क्यों करता मानव तू गुमान,

मानव चेतना में है विराट स्वाभिमान ज्ञान।8।

रूप, पद, बल,धन नहीं है स्वत्व की पहचान, 

मूल्य, चरित्र, नैतिकता में स्वत्व हो तू जान।9।

संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था मानव की पहचान अखंडता, सार्वभौमता, समरसता में होता यह ज्ञान।10।

ब्रह्म में विराट के सहअस्तित्व को पहचानिए,

सहअस्तित्व में जीकर विराट पहचान पाइए।11।

सुख, शांति, संतोष, आनन्द के लिए यही, 

समझिये, समझाइये, सीखिए और सिखाइये।12।


*सुरेंद्र पाठक*

1 अगस्त 2020